Thursday, January 14, 2010

एक भीगती हुई शाम



महालक्ष्मी रेलवे स्टेशन
चर्चगेट जाने वाली लोकल महालक्ष्मी स्टेशन पर रुकी। लेडिज कम्पार्टमेन्ट से ढेर सारी महिलाओं के रेले के साथ वह भी बारिश से भीगते हुए प्लेटफार्म पर उतरी। आज सुबह से बारिश हो रही थी लेकिन बारिश की वजह से मुम्बई की जिन्दगी थम नहीं जाती। उतरने के साथ ही वह रेसकोर्स की ओर जाने वाले गेट की ओर चल पड़ी। आज उसने साड़ी पहनी थी। जब भी वह विदित के साथ जाती है तो अधिकतर साड़ी पहनती है क्योंकि विदित को वह साड़ी में बहुत अच्छी लगती है हालांकि नियमित रूप से साड़ी न पहनने के कारण उसे उलझन महसूस होती है पर ग्राहक ग्राहक है, उसके मन मुताबिक तो करना ही पड़ता है फिर वह बिल्कुल अलग किस्म का ग्राहक है।
तभी उसके पर्स में रखा उसका मोबाइल फोन थरथराया। उसके चेहरे पर मुस्कराहट खेल गई। उसे विदित का अधीर चेहरा याद आया। वह स्टेशन के बाहर उसकी प्रतीक्षा कर रहा है। वह मोबाइल निकालने के लिए पर्स खोलने ही लगी थी कि उसकी थरथराहट रुक गई। किसी ने मिस कॉल छोड़ी थी। उसने मोबाइल निकालकर नम्बर देखा जो पहचाना था। उसने उसी नम्बर पर कॉल लगाई।
''कैसी है अपुन का सेहर बाई?'' दूसरी ओर से कॉल मिलते ही कहा गया।
''तेरे को मेइच मिली थी मिस कॉल छोड़ने कू?'' साड़ी, मोबाइल, छाता, पर्स और खुद को भीड़ में सँभालती हुई वह बोली, जिसका नाम सेहर है।
''अरे पइसा किदर इदर? साला इदर बैलेन्स डालो उदर फुर्र।''
''फालतू सयानपन्ती नईं समझा न और मेरा बैलेन्स काये कू बिगाड़ने का? किस वास्ते मिलाया जल्दी बोल।''
''कायकू चिनता करती, तू तो पइसे वाली है न, क्या?''
''तेरे को मालूम न, मालूम न मैं कइसे कमाती। काम बोलने का या मैं काटती।''
''तेरे वास्ते गुड न्यूज है तबीच मिलाया मैं फोन।''
''तो टाइम क्यों खोटी करने का। दे गुड न्यूज।''
''तेरा चाचा अक्खा फैमली के साथ हाजी अली चौराहे पर है आजकल।''
''पण मेरे कू तो खबर लगा था कि वो भाण्डुप में कहीं है और किसी नशेपानी के धन्धे में है।''
''इसका मेरे कू मालम नेई पण हाजी अली का खबर बरोबर है। वो भाण्डुप में हो या अक्खा मुम्बई में पण वो हाजी अली जरूर मिलेंगा, क्या?''
''सालिड खबर है न या तेरी खाली पीली की भंकस?'' सेहर उत्तेजित स्वर में बोली।
''बरोबर सालिड। बोले तो सलमान खान का बाडी जैसा सालिड।'' उधर से हँसते हुए कहा गया।
''अगर खबर बरोबर होयेंगा न तो तेरा बैलेन्स पक्का।'' उसने कहा और फोन काट दिया।
''आज का प्रोग्राम खल्लास करना पडेंग़ा।'' वह बड़बड़ाई।

स्टेशन से बाहर निकलते ही उसने छाता खोल लिया। चेहरे पर उसके ऐसे भाव थे कि साफ पता चलता था कि आज उसके चाचा की खैर नहीं। और विदित का क्या होगा?

केशव राव खड्ये मार्ग
विदित ने अपनी कलाई घड़ी में समय देखा। सवा चार हो रहे थे। उसकी कार का चेहरा स्टेशन वाली सड़क की ओर था। सेहर यहीं से आने वाली थी। पाँच मिनट पहले ही वह यहाँ पहुँचा है। बारिश अभी हल्की थी मगर अब तेज हो गई थी। उसका नाम विदित राय है और वह दादर स्थित एक एक्सपोर्ट हाउस में ऊँचे पद पर काम करता है। इसके अलावा वह शेयर बाजार में भी अपनी किस्मत आजमाता है। वह सिवरी में पत्नी और दो बच्चों के साथ रहता है।
सेहर से उसकी पहली मुलाकात करीब आठ महीने पहले एक बार में हुई थी जहाँ उसका एक दोस्त उसे लेकर आया था और तभी उसे मालूम हुआ था वह धन्धे वाली है, सस्ती धन्धे वाली है। मगर उसमें एक कशिश थी, कातिल कशिश, और, और भी कुछ था जिसकी वजह से वह उस पर मोहित हो गया था। अगले ही दिन उसने सेहर को बुक कर लिया था। उसने पत्नी के अलावा बहुत-सी औरतों के साथ रात गुजारी है मगर पैसा देकर औरत का साथ उसने उस दिन पहली बार हासिल किया था। पहला साथ उसे बेहद पसन्द आया था क्योंकि वह उसके टेस्ट की लड़की थी। फिर वह अक्सर उसे बुलाने लगा था। ऐसा नहीं था कि उसे अपनी पत्नी अच्छी नहीं लगती थी या वह उसकी शारीरिक पूर्ति नहीं कर पाती थी, बस उसे बाहरी औरतों का शौक लगा हुआ था। अपने आफिस की भी कई महिलाओं के साथ वह सम्बन्ध बना चुका था।
लेकिन पिछले एक महीने से वह परेशान था। पिछले महीने वह एक लड़की के साथ डॉ. एनी बेसेन्ट रोड़ स्थित अतरिया मॉल में था। जहाँ वह लड़की तीसरे लेवल के एक शोरूम से कुछ खरीदारी कर रही थी। वह उसकी खरीदारी से बोर होता हुआ बाहर आ गया था और रेलिंग के किनारे पर खड़ा होकर नीचे झाँक रहा था। नीचे जो उसने देखा तो उसके होश उड़ गए। उसने देखा पहले लेवल पर उसकी पत्नी इरा किसी गैर मर्द की बाहों में बाहें पिरोये घूम रही है। वह हैरान रह गया कि उसकी मासूम-सी दिखने वाली बीवी किसी के साथ मौज मार रही थी। अपने खौलते खून को काबू करता हुआ वह तुरन्त उस लड़की के पास पहुँचा और जरूरी काम का हवाला देकर वहाँ से विदा हो गया। उस दिन वह समय से जल्दी घर पहुँचा था तो इरा खाना बना रही थी। बच्चों की स्कूल की छुट्टी थी तो वे अपनी नानी के यहाँ गए हुऐ थे। उसने इरा से पूछा था।
''आज क्या किया दिन भर?''
''आज तो दिन भर लेटी रही, सरदर्द था।'' उसने मासूमियत से कहा।
''अब कैसा है?'' उसने भी मासूमियत भरे स्वर में पूछा।
''ठीक है अब।'' इरा ने जवाब दिया और उसके लिए चाय का पानी चढ़ाने लगी।
ठीक तो होगा ही, यार के साथ मॉल की हवा जो खाकर आई है। उसने मन ही मन सोचा।
उसकी विचारधारा टूटी। उसका मोबाइल बज रहा था। नम्बर अजीत का था। अजीत प्राइवेट जासूस है। उसने इरा के आशिक के बारे में मालूमात करवाने के लिए अजीत की सेवाएँ ली थी।
''हाय अजीत, हाउ आर यू?'' विदित ने फोन ऑन करते ही कहा।
''फाइन। रिपोर्ट तैयार है। कहाँ दूँ, सर?''
''मैं आपके आफिस से कल क्लैक्ट कर लेता हूँ।'' वह सेहर के शरीर की कल्पना करता हुआ बोला।
''एक्चुली, मैं आज ही देना चाहता हूँ। कल मैं फुल वीक के लिए पुणे जा रहा हूँ। और...कुछ खास बात भी है।'' अजीत की गम्भीर आवाज उसके कानों के रास्ते भीतर उतर गई।
''क्या खास बात?'' वह भी गम्भीर हो गया।
''ये बात तो मिलकर ही बतायी जायेगी। आप कहाँ पर हो?''
''रेसकोर्स।''
''क्या घोड़ों का शौक भी रखते हैं? और हमें मालूम भी नहीं।''
''अरे नहीं। रेसकोर्स के बाहर हूँ, वेटिंग फॉर समबॉडी। और फिर ऐसी बरसात में कहाँ घोड़े दौड़ रहे होंगे?''
''तो आप तो पास ही हो। मैं यहाँ पेडर रोड़ पर हूँ। ऐसा करते हैं महालक्ष्मी मन्दिर के पास एक रेस्तरां है मिकास। वहाँ मिलते हैं। अभी चार पैंतीस हुए हैं। पाँच बजे ठीक रहेगा?''
विदित सोचने लगा। सेहर का क्या होगा? कुछ देर वेट कर लेगी गाड़ी में।
''रिपोर्ट क्या है?'' उसने अजीत के सवाल पर अपना सवाल लाद दिया।
''रिपोर्ट तो ओके है, सर। मगर उससे जुड़ी कोई बात बहुत सीरियस है।''
''कोई लफड़ा है क्या?''
''ऐसा ही समझो।''
''अच्छा! तो ठीक है, पाँच बजे मिकास में मिलते हैं। ये मिकास, मन्दिर के पास ही है न?''
''जी हाँ। मेन रोड़ पर ही है, भूला भाई देसाई रोड़ पर। हीरा पन्ना टि्वन बिल्डिंग्स के सामने।''
''ओके दैन। सी यू।''
''बाय सर।'' अजीत ने दूसरी ओर से कहा और फोन काट दिया।
क्या बात हो सकती है जो वह फौरन मिलना चाहता है? इसके साथ-साथ वह सोच रहा था कि सेहर का प्रोग्राम कैन्सल करना पड़ेगा। ऐन वही बात जो स्टेशन से बाहर निकलती हुई सेहर सोच रही थी। जिस बारिश के कारण उसने सेहर को बुलवाया था और जो उसे रोमान्चित, आनन्दित कर रही थी वही अब परेशान करने लगी। फिर उसने दिल को तसल्ली दी कि सेहर तो हमेशा उपलब्ध है, फिर बन जाएगा प्रोग्राम।
तभी किसी ने उसकी कार का शीशा खटखटाया।
सेहर थी। सेहर ने उसकी बगल में बैठने के बाद छाता बाहर की बाहर बन्द किया और उसे कार के फर्श पर डाल दिया और दरवाजा बन्द किया। उसके बाद वह मुस्कराहट भरे चेहरे के साथ उसकी ओर पलटी और बोली, ''कइसा है मेरा सेठ?''
बौछारों से भीगा उसका साँवला मुस्कराता चेहरा देख विदित खुश हो गया। एक पल को वह सब कुछ भूल गया। उसने उसे अपनी ओर खींचा और उसके गाल को चूमा और छोड़ दिया।
''मालूम हो गया कैसा हूँ मैं?'' वह शरारतपूर्ण स्वर में बोला।
''सेठ, तू कभीच नईं बदलेंगा।'' सेहर भी उसी स्वर में बोली।
''मैं बदलने के लिए नहीं बना हूँ, डियर। और तुम साड़ी में बहुत हसीन लगती हो। मेरे लिए ही पहनी है न?''
''तुम्हेरे वास्ते सेठ, सिर्फ तुम्हेरे वास्ते।'' उसने सहमति में सिर हिलाते हुए मुदित स्वर में कहा, ''मेरे कू तेरी भोत सारी बातें अच्छी लगती हैं। तू औरों की माफिक नोंच खसोच नेई करता, तू औरों की माफिक रकम की पाई पाई वसूल नेई करता।''
''साली, मेरे को चलाती है। बहुत चालू आइटम है तू।'' विदित ने हँसते हुए कहा।
''मैं बरोबर सच्ची बोलती रे, आई शपथ।'' उसने गले की घण्टी को ऐसे छुआ जैसे उसकी माँ वहीं बैठी हो।
विदित ने कार स्टार्ट की।
''सेठ, एक बात पूछने का था अपुन को।'' उसकी मुस्कराहट का स्विच ऑफ हो गया और स्वर भी बुझ सा गया, ''मेरे को हाजी अली चौराहे पर कुछ काम... अगर टैम का तोड़ा न हो तो मेरे को कुछ देर वहाँ रुकना माँगता?''
''क्या काम है?'' उसने पूछा। उसे भी तो वहीं काम था। दोनों की मन्जिल आसपास ही थी।
''परसनल करके थोड़ा।'' सेहर ने हल्के से हिचकते हुए कहा। ग्राहक है, बल्कि प्रिय ग्राहक है, बिदकना भी तो नहीं चाहिए।
''ज्यादा टाइम तो नहीं लगेगा।''
''ज्यासती कमती तो उदरिच मालूम होयेंगा। पण तुम इदर से हिलेगा तबी तो।'' वह बोली, ''अगर कोई लफड़ा न हुआ तो... वरना तो प्रोग्राम खोटा होयेंगा।''
विदित कुछ नहीं बोला। उसने कार स्टार्ट की और कार आगे रोड़ पर डाल दी। रोड़ सीधा हाजी अली चौराहे पर जा रहा था। क्या संयोग था? इसका भी कोई लफड़ा और उसका भी कोई लफड़ा।
सेहर ने भी उससे नहीं पूछा कि प्रोग्राम खोटा होने के बारे में उसने कोई सवाल नहीं किया। आज सेठ का मूड कुछ खराब लग रहा है। दोनों चुपचाप रहे। दोनों की खामोशी को रेडियो मिर्ची तोड़ रहा था। अभिनव बिन्द्रा ने ओलम्पिक में गोल्ड मैडल जीता है, उसकी चर्चा हो रही थी। विदित ने कार आगे रोड़ पर बढ़ा दी।
बरसात की वजह से सड़क पर ट्रैफिक धीमा चल रहा था।
''क्या हुआ सेठ?'' उसने उसकी ओर देखते हुए पूछा, ''कोई लोचा?''
''नहीं...। शायद...।'' वह अनिश्चय स्वर में बोला।
सेहर ने जिद नहीं की। उसे मालूम है कि कब क्या करना चाहिए। कब क्या कहना चाहिए।


हाजी अली चौराहा
''इण्डिया को गोल्ड! इण्डिया को गोल्ड!!''
एक दस-ग्यारह साल की लड़की चौराहे पर लाल बत्ती पर रुके वाहनों के बीच बारिश में भीगती हुई, पॉलीथिन में शाम के अखबारों का पुलन्दा लिए चिल्लाती घूम रही थी। अभिनव बिन्द्रा ने चीन ओलम्पिक में स्वर्ण पदक जीता है, लड़की उसी खबर को कैश करती हुई अखबार बेचने का प्रयास कर रही थी।
''इण्डिया को गोल्ड! इण्डिया को गोल्ड!!''
बारिश अब फिर से हल्की हो गई थी। विदित की कार भी उसी जगह रुकी थी जिस ओर वह लड़की अखबार बेच रही थी।
''वो सामने चौराहा है, तुम्हें यहाँ उतरना है क्या?'' उसने सेहर से पूछा।
''बरोबर सेठ, बिना उतरे तो कामिच नई होना।'' उसने दरवाजा खोलने के लिए हाथ बढ़ाया, ''तुम मेरे को बाजू वाली सड़क के किनारे पर मिलने का। बरोबर?''
''सुनो।'' विदित बोला, ''मुझे भी महालक्ष्मी मन्दिर के पास कुछ काम है, तो जो पहले फ्री होगा वो दूसरे को कॉल कर लेगा। ठीक है?''
सेहर ने सहमति में सिर हिलाया और उतर गई। उसकी कार ट्रैफिक में खड़ी रही। रश अधिक था, चौराहा पार करते-करते ही पाँच बज जाने थे। तभी उसका मोबाइल फोन बजा। इरा का फोन था।
सेहर ने सीधे अखबार बेचने वाली लड़की की ओर रुख किया। लड़की एक-एक कार का दरवाजा खटखटाकर अखबार बेचने की कोशिश कर रही थी।
''ऐ इदर आ।'' सेहर चिल्लाई, ''ऐ... ये बाजू।''
लड़की ने आवाज की दिशा में देखा। नीले छाते के नीचे मौजूद सेहर को देखते ही उसके चेहरे पर हैरानी के भाव आए। लड़की के देखते ही सेहर ने उसे अपनी ओर आने का इशारा किया। लड़की ने उसके पास आने की कोई कोशिश नहीं की।
''इण्डिया को गोल्ड! इण्डिया को गोल्ड!! इण्डिया को गोल्ड!!!'' लड़की ने अपनी आवाज तेज कर दी और सेहर से विपरीत दिशा में जाने लगी।
सेहर के चेहरे के भाव बदले और वह उसके पीछे लपकी। जल्द ही उसने उसे पकड़ लिया।
''इण्डिया को तो वो छोकरा गोल्ड दे दिया पण तेरे को क्या मंगता? कायकू गला फाड़ के चिल्लाती? तेरे कू क्या मिल रेला है ये भीगेले पेपर की बदली? साला, मुम्बई का अक्खा लोक मैडल मैडल ही चिल्ला रेला है।'' सेहर उस लड़की से बोली।
''छोड़ मेरे कू अबी। मेरे को पेपर बेचने का है।'' लड़की उससे छूटने का प्रयास करती हुई बोली।
''अबी तो तू पेपर बेच रेली है पण बाद में क्या बेचगी? मेरे माफिक अपना तन?'' सेहर कह रही थी, ''वो तेरे कू भी वोइच बनायेंगा जो मेरे कू बनाया। क्या?''
लड़की उसकी पकड़ से छूटने को कसमसा रही थी।
''मैं भी तेरी माफिक पिछली बार येइच चार साल पेले इण्डिया को सिलवर-इण्डिया को सिलवर गल्ले को निकाल-निकाल कर पेपर बेची थी पण मिला क्या? कुछ नई। ये दुनिया बड़ी हरामी साली। क्या?''
''मेरे को नई जमती तेरी बात। छोड़ मेरे कू।'' लड़की छोड़ने की रट लगा रही थी।
''छोड़ तो मैं देगी, मेरे कू बता, तेरा बाप किदर है?''
''वो सामने जूस वाले की बाजू में आई बैठेली है, उसको पूछ।''
सेहर ने लड़की की बताई दिशा में देखा। उसे सिर्फ चलते हुए, रुके हुए वाहन ही वाहन दिखाई दे रहे थे, उनके पीछे किस्तों में जूस वाला तो दिख जाता था पर उस लड़की की मां नहीं।
''मेरे कू छोड़ न।'' लड़की फिर उसकी पकड़ में छटपटाई। सेहर ने अपनी पकड़ ढीली कर दी। लड़की छूटी और इण्डिया को गोल्ड का नारा बुलन्द करती रुके हुए वाहनों के बीच गुम हो गई। लाल बत्ती के हरा होने के बीच का ही अल्प समय उसकी दुकानदारी का समय है। इस अल्प समय में अधिक से अधिक अखबार या अन्य वस्तुएं बेचना ही उसकी काबलियत होगी, उसकी सेल्समेनशिप होगी।
सेहर लाला लाजपत राय पार्क के सिरे से गुजरती हुई जूस वाले की ओर चल पड़ी जिसके पहलू से हाजी अली दरगाह को रास्ता जाता है।


कॉफी कैफे डे, पेडर रोड़
प्राइवेट जासूस को गए दस मिनट हो गए थे मगर वह अभी भी वहीं बैठी हुई थी। टेबल पर दो बड़े लिफाफे रखे थे जिनके एक कोने में ''स्पाई आई'' और उसके नीचे वर्ली का एक पता और फोन नम्बर लिखे थे। वे दो लिफाफे नहीं, पलीते में आग लगे बम थे।
वह उदास है। उसका नाम इरा है। टेबल पर प्राइवेट जासूस अजीत की जो रिपोर्ट पड़ी थी, देख चुकी थी। एक लिफाफे में उसके प्रिय और वफादार पति विदित की करतूतों का चिट्ठा था। उसमें विदित के विभिन्न फोटो थे जिसमें वह तीन लड़कियों के साथ था। उसमें से एक लड़की तो साफ-साफ बाजारू लग रही थी, लग क्या रही थी, थी। लड़की की डिटेल में उसका नाम सेहर था और धन्धा वेश्यावृत्ति लिखा था। उसे समझ नहीं आ रहा था उसमें ऐसी क्या कमी आ गई थी जिससे वह बाजारू औरतों के पास भी जाने लगा था। पता नहीं ये एडवेन्चर था या मौज-मस्ती, सोच-सोचकर उसका दिमाग भन्ना गया था। और दूसरे लिफाफे में...
कॉफी बहुत पहले खत्म हो चुकी थी। अपने भन्नाये हुए दिमाग को काबू करने के लिए उसने एक कॉफी का और ऑर्डर दिया।
अपने पति के पीछे जासूस उसने कोई एकाएक नहीं लगाया था। उसके बहुत से कारण थे, जैसे विदित का लगातार झूठ बोलना, होना कहीं और पर बताना कहीं और, एक की जगह तीन मोबाइल फोन रखना, उनकी कॉल लॉग्स, एसएमएस वगैरह वगैरह। कोई पन्द्रह-बीस दिन पहले उसने अखबार में से देख अजीत नाम के प्राइवेट जासूस को हायर किया था। उसकी रिपोर्ट उसे सन्तोषजनक लगी थी लेकिन उसने अभी यह नहीं सोचा था कि इस रिपोर्ट का वह क्या और कैसे इस्तेमाल करेगी? फिलहाल उसे ये तसल्ली थी कि उसका शक सही निकला था लेकिन तसल्ली ही काफी नहीं थी, उस पर पलट वार हो गया था।
शीशे के पार उसे पेडर रोड़ और बरसती हुई बरसात दिखाई दे रही थी। बरसात उसे सदा से रोमांचित करती है। शादी से पहले वह उज्जैन रहती थी, बरसात के मौसम का जैसे वह इन्तजार करती थी। मगर मुम्बई की बरसात अच्छी तो है लेकिन खतरनाक भी है। उसे जुलाई दो हजार पाँच की बरसात याद है जिसमें न जाने कितने लोग मारे गए थे। उसकी याद आते ही शरीर में झुरझुरी आ गई। लेकिन मुम्बई की बरसात उसे रोमांचित नहीं करती और आज की बरसात तो उसे मानसिक रूप से भी परेशान कर रही है।
उसने एक आह भरी। मेज पर पड़े दोनों लिफाफे उठाकर उसने अपने पर्स में रखे। दूसरा लिफाफा अधिक खतरनाक था। लिफाफे रखते समय उसे मोबाइल दिखाई दिया। उसने मोबाइल निकाला और विदित को फोन लगाया। तभी वेटर कॉफी रख गया।
''हाँ जी?'' दूसरी ओर से विदित ने कहा। वह उसके फोन के जवाब में हमेशा ''हाँ जी'' कहता है।
''क्या कर रहे हो?'' उसने पूछा।
''ट्रैफिक जाम में फँसा हूँ, उससे निकलने की कोशिश कर रहा हूँ।'' उसने जवाब दिया, ''बोल?''
''बाजू में कौन है?''
''बाजू में कौन है? मतलब?'' विदित का उलझा स्वर उसके कानों में पड़ा।
''वैसे ही पूछा। अकेले जा रहे हो?'' वह अपने स्वर को सन्तुलित करने का भरसक प्रयास कर रही थी।
''मैं अकेले जा रहा हूँ। आफिस के काम से जा रहा हूँ। मीटिंग के लिए जा रहा हूँ। और? विदित झल्ला गया, ''वैसे, क्या हुआ तुझे? तू कहाँ है?'' उसे अजीब लगा कि इरा बड़ा अटपटा सवाल कर रही थी।
''मैं...मैं मार्किट में हूँ। तुम्हारी याद आई तो फोन किया।''
''बारिश में कहाँ मार्किट घूम रही है? अच्छा..., ठीक है मैं काटता हूँ। ट्रैफिक खुल रहा है। ठीक है?''
''हूँ।'' इरा धीरे से बोली और फोन काट दिया और कॉफी की ओर आकडि्र्ढत हुई। विदित से हुई बातों से तो लग रहा था जैसे उसे कुछ मालूम ही न हो।
''यह बात मेरे धन्धे से मेल नहीं खाती फिर भी मैं आपको एक राज की बात बताता हूँ।'' अजीत ने चलते समय दूसरा लिफाफा निकालकर मेज पर रखते हुए रहस्यमय स्वर में कहा था, ''आपके हसबैण्ड को मैं पहले से जानता हूँ क्योंकि उनसे मेरे अच्छे बिजनेस टर्म्स हैं लेकिन जो रिपोर्ट आपको दी है उसके बारे में मैं भी नहीं जानता था...''
वह समझ नहीं पा रही थी कि अजीत क्या कहना चाह रहा है।
''...मैं आपको इन्कार भी कर सकता था लेकिन धन्धा धन्धा है और ग्राहक ग्राहक। इस बात का मैं आपको विश्वास दिलाता हूँ कि इस रिपोर्ट में मैंने उनका कोई फेवर नहीं लिया। रिपोर्ट उतनी ही सच्ची है जितनी धरती और आकाश।''
इरा के चेहरे पर अभी भी उलझन के भाव थे।
''जिस समय विदित की जासूसी की जा रही थी, उसी समय आपकी भी जासूसी हो रही थी जो विदित करवा रहे थे।'' कहते समय अजीत का स्वर सामान्य से और धीरे हो गया था।
''क्या?'' इरा को जबरदस्त झटका लगा था।
''जी हाँ।'' उसने दूसरे लिफाफे की ओर इशारा करते हुए अर्थपूर्ण स्वर में कहा, ''इसमें आपकी रिपोर्ट है।''
वह हैरानी से उस लिफाफे को देख रही थी जिसका ''स्पाई आई'' का लोगो उसे घूर रहा था।
''क्या... इस...इसके...'' इरा से बोला नहीं गया।
''कुछ मत कहिए। कोई जरूरत भी नहीं है। सिर्फ सोचिए।''
इरा खाली निगाहों से लिफाफों को देखती रही।
''यह मेरे धन्धे के खिलाफ है लेकिन मेरा आपको बताने का मकसद सिर्फ यही है कि विदित से मेरे बहुत अच्छे सम्बन्ध हैं और मैं नहीं चाहता कि उनके वैवाहिक सम्बन्धों को कोई नुकसान पहुँचे। आप दोनों एक दूसरे का सच जान गए है, अगर हो सके तो एक बुरा सपना या बुरा दौर समझ कर इसे भुला दीजिएगा, बाकी आप समझदार हैं। गुडबाय भाभी जी।'' पहली बार अजीत के मुँह से ''भाभी'' शब्द बहुत अजीब लगा।
''और हाँ भाभी जी, जो आपने मुझे एडवान्स दिया था वो रकम लिफाफे में रखी है। फीस के बदले में मैं आपके घर में सुख और शान्ति चाहूँगा। गुडनाइट।''
कॉफी खत्म हो चुकी थी। उसने वेटर को इशारा किया।
अनिश्चय से घिरी कुछ देर बाद वह उठ खड़ी हुई। उसकी कार सामने ही खड़ी थी।


मिकास रेस्टोरेंट, भूला भाई देसाई रोड़
विदित जब वहाँ पहुँचा तो अजीत को उसने कोने की मेज पर विराजमान पाया। उसके सामने बीयर भरा आधा गिलास, किंगफिशर की बोतल और मूँगफली की कटोरी थी। अजीत का ध्यान अपने मोबाइल फोन पर था। विदित उसकी ओर न जाकर टॉयलेट की ओर चला गया।
कुछ देर बाद वह लौटा। बीयर की मात्रा में कोई अन्तर नहीं आया था। इस समय अजीत फोन पर किसी से बात कर रहा था।
''हैलो।'' विदित ने उसके पास पहुँचकर अपना हाथ आगे बढ़ाया। अजीत ने उसे देखा, मुस्कराया और हाथ मिलाने के लिए खड़ा हुआ। हाथ मिलाते हुए फोन काटा और बोला, ''कैसे हैं सर?''
''फाइन।'' वह उसके सामने बैठते हुए बोला, ''आप तो शायद यहीं बैठे हुए थे।'' बीयर पर निगाहें डालते हुए उसने अर्थपूर्ण स्वर में कहा।
''अरे नहीं सर। मैं बस थोड़ी ही देर पहले ही पहुँचा हूँ।'' वह हँसते हुए बोला, ''अभी तो दो घूँट ही लगाये हैं। आप?''
''बिल्कुल। नेकी और पूछ-पूछ। पूरी मुम्बई में झमाझम पानी बरस रहा है मगर यहाँ गले सूखे पड़े हैं।''
दोनों हँसे। अजीत ने वेटर को गिलास लाने का इशारा किया।
विदित गम्भीर हुआ।
''क्या समस्या है, अजीत साहब।''
''पहले गला तो गीला करो, सर। फिर बात करके हैं।''
गिलास आने, बीयर गिलास में डलने और उसका तृप्तिपूर्ण ढ़ंग से विदित का घूंट लगाने तक दोनों में से कोई नहीं बोला।
''प्रोसीड।'' विदित ने अधीरता से कहा।
अजीत तैयार था। बिना कोई भूमिका बनाये उसने कहना आरम्भ किया।
''सर, रिपोर्ट तैयार है जो मेरे बैग में पड़ी है।'' कहते हुए उसने अपने पैरों के पास रखा एक्सीक्यूटिव बैग उठाया और उसमें से एक वैसा ही लिफाफा निकालकर मेज पर रख दिया जैसा वह अभी थोड़ी देर पहले इरा को देकर आया था, ''पहले आप रिपोर्ट देखेंगे या...'' अजीत ने धीरे से वाक्य को रहस्य में लपेट पर अधूरा छोड़ दिया।
विदित का हाथ लिफाफे पर पहुँच चुका था पर वह लिफाफे पर ही रुक गया।
''यार, क्या सस्पैंस है?'' उसने एक गहरी सांस छोड़ते हुए कहा।
''सस्पैंस कुछ नहीं, संयोग है। ये संयोग भी बड़ी अजीब चीज होती है, सुख और दुख दोनों उससे जुड़े होते हैं पर किसके हिस्से में क्या आता है यह वही जानता है, जो इस संयोग से गुजरता है।''
''आप क्या कहना चाह रहे हैं?'' विदित ने उलझनपूर्ण स्वर में कहा।
''इन शॉर्ट सर, मैं बताना तो नहीं चाहता क्योंकि ये मेरे धन्धे के खिलाफ है लेकिन बताये बिना भी मुझसे रहा नहीं जायेगा क्योंकि आप मेरे अजीज है, आपकी कम्पनी से मुझे बल्कि यों कहा जाए आपसे मुझे बहुत काम मिलता है तो मेरा फर्ज बनता है कि कम से कम ये बात मैं आपसे शेयर करूँ।'' अजीत रुका, बीयर का घूँट लिया और आगे कहना शुरू किया। इस दौरान धैर्य की प्रतिमूर्ति बना विदित उसे देख और सुन रहा था।
''जब आपने मुझे अपनी पत्नी को वॉच करने का काम दिया था तो उसी दौरान आपकी पत्नी ने भी मुझे आपको वॉच करने के लिए हायर किया था...।'' अजीत प्रतिक्रिया देखने के लिए रुका।
''अच्छा!'' विदित के मुँह से सिर्फ इतना निकला लेकिन भीतर ही भीतर वह जड़ हो गया था।


हाजी अली चौराहा
सेहर को वह दिखाई दे गई। दीवार के सहारे एक तिरपाल टँगा हुआ था जिसके नीचे उसकी चाची बैठी हुई थी। उसकी गोद में एक एक-डेढ़ साल का बच्चा था। उसके सामने गुलाब के फूलों का ढेर था और कुछ गुच्छे तैयार किए हुए बगल में रखे थे। उसकी बगल में मवाली सा एक आदमी बैठा हुआ था। सेहर उसके सामने जा खड़ी हुई। सेहर ने उड़ती हुई निगाह उस आदमी पर डाली और अपनी चाची को देखा और उसकी चाची ने उसे।
''तू! किदरीच है तू? आजकल तो दिखतीच नई तू?'' उसकी चाची ने उसे देखते ही कहा।
''जिदरीच हूँ, बरोबर हूँ।'' सेहर बोली, ''चाचा किदर है?''
''बारिश में कायकू भीग रेली है, भीतर आजा। चा मँगाऊँ तेरे वास्ते?''
''मेरे को नई मँगता तेरी चाय। मय पूछ रेली हूँ किदर में है वो?'' उसने अभी भी छाता ताना हुआ था।
''मेरे कू क्या मालम, इसकू पूछ'' चाची ने बगल में बैठे आदमी की ओर इशारा किया, ''आजकल इसकेइच साथ रैता है।''
''तेरे से जी भर गया क्या?''
''हैं!! क्या बोली छोकरी तू?'' चाची चौंकती हुई बोली।
लेकिन सेहर नए सिरे से उस अजनबी आदमी को देख रही थी। वह आदमी उसे घूर रहा था।
''मय इसकू नई पिछानती, तू बता मेरे को, किदर है वो?'' सेहर फिर चाची की ओर आकर्षित हुई।
''पहचान बनाने में क्या देर लगती है, बाई।'' वह आदमी बोला। वह अभी भी उसे घूर रहा था।
''ऐ, ज्यासती नेई। क्या?'' सेहर उबल पड़ी।
''मैं कहाँ ज्यासती किया?'' वह बेशर्मी से हँसा, ''किया क्या?'' उसने चाची को देखा, ''किया क्या मैं ज्यासती।''
''जरा बी नई।'' वह उसकी हाँ में हाँ मिलाती हुई हँसती हुई बोली, ''तू तो कमती भी नई किया, ज्यासती कायकू करेंगा।''
सेहर अपमान से जल उठी।
''मेरे कू मेरा पइसा चाइये।'' वह चाची से बोली। उसे लगा बात बढ़ाने से कोई फायदा नहीं होगा। फिर उसका चाचा भी गायब था।
''कइसा पइसा?'' वह नकली आश्चर्य का प्रदर्शन करती हुई बोली, ''मेरे कू दी तू। जिसकू दी उससे लेने का, क्या? और पइसा होता तो क्या मैं चौराहे पर पड़ी होती। मेरे पास तेरा पइसा नई क्या? और अपुन के ऊपर नई खड़े होने का। अब फूट इदर से।''
''तो चाचा का पता बोल। मुझे बरोबर खबर लगेला है वो नशेपानी के धन्धे में है और भोत पइसा बना रेला है। तू बता मेरे कू।''
''तेर कू सुनताच नई क्या? मेरे कू नई मालम।''
सेहर कुछ कहने ही लगी थी कि मवाली बोला, ''तुझे जगदीश का पता चाहिए? पण वो तो इधर ही रहता है, इसी तिरपाल के नीचे।''
''वो अब्बी किदर है?'' सेहर ने पूछा।
मवाली और चाची की नजरें आपस में मिलीं। भगवान जाने क्या इशारा हुआ। क्या साली सैफ करीना की जोड़ी है। सेहर ने सोचा।
''वो भुसावल गया है।'' फिर वह बोला।
''ये किदर है?'' उसने पूछा।
''बहुत दूर है। चार-छह घण्टे लगते हैं वहाँ पहुँचने में।''
''मेरे को अलीबाग से आई समझ रेला है तू।'' वह रोड्ढपूर्ण स्वर में बोली और चाची से बोली, ''ये तेरा भौंपू करके है क्या? मेरे कू मेरा पइसा चाहिए। कबी आयेगा वो हरामी।''
''अपने चाचा कू हरामी बोली तू?'' चाची बोली।
''बरोबर बोली। वो हरामिच ही है। मेरे कू रण्डी बनाने वाला वोइच, मेरी कमाई खाने वाला वोइच और मेरा सारा पइसा डकारने वाला वोइच।'' उसका चेहरा तमतमा गया था।
चाची का चेहरा स्याह पड़ गया था। उससे कुछ कहते नहीं बन रहा था। मवाली लगातार उसे घूर रहा था जैसे नजरों में ही हजम कर जाएगा।
''मेरे कू नई बतायेगी तू उसका पता?'' सेहर बोली।
''मेरे कू मालमइच नेइ है और मालम बी हो तोबीच नेइ बताती।'' चाची रूखे स्वर में बोली, ''अब इदर से खिसकने का। धन्दे का टैम है, टैम खोटी नेइ करने का।''
''आज मय फैसला करके जाएगी।''
''तेरी मर्जी।''
सेहर की कुछ समझ नहीं आ रहा था। उसने फिलहाल इन्तजार करने का फैसला किया। कम से कम तब तक, जब तक विदित का फोन नहीं आ जाता।
बारिश फिर से तेज हो गई थी। वह जूस वाले की तिरपाल के नीचे जाने के लिए उस ओर बढ़ी।


मिकास रेस्टोरेंट, भूला भाई देसाई रोड़
अजीत अभी भी चुप था और विदित को देख रहा था। विदित कहीं नहीं देख रहा था। वह सोच रहा था। इरा उसकी उम्मीद से कहीं अधिक होशियार निकली थी। उसने सपने में भी नहीं सोचा था वह ऐसा भी कर सकती है लेकिन उसने गलत क्या किया, इरा ने वही तो किया जो वह कर रहा था।
विदित ने अपना बीयर का गिलास उठाया और एक बार में खाली कर दिया। अजीत ने गहरी सांस छोड़ी। प्रतिक्रिया सामने आ गई थी।
''आगे?'' विदित ने पूछा।
''और बीयर मँगाता हूँ।'' अजीत ने कहा।
''यार, मसखरी मत करो। तुमने मेरी जासूसी की?''
''वो मेरा धन्धा है, मुझे करना ही था और उस समय मुझे पता भी नहीं था कि वो भाभी जी हैं। लेकिन मैं सिर्फ इतना कहना चाह रहा हूँ कि इस सारे खेल में आपको जो नुकसान हुआ है...।''
''मुझे तुमसे ऐसी उम्मीद नहीं थी। मेरे साथ ठीक नहीं किया तुमने।'' विदित ने उसकी बात काटते हुए कहा।
''...उसकी भरपाई हो सकती है।
वह अपने चेहरे पर प्रश्नचिन्ह लिए अजीत को देख रहा था।
''जी हाँ।'' अजीत ने वेटर को और बीयर लाने का इशारा करते हुए कहा।
''मेरा जितना नफा नुकसान करना था वो आपने कर दिया है।'' वह तनिक निराशापूर्ण स्वर में बोला और लिफाफा खोलने लगा।
''देखिये सर, अगर मैं आपको नहीं बताता तो आपको कभी मालूम नहीं होता। आपको बताने का मेरा सिर्फ यही मकसद है कि आपसे मेरे बहुत अच्छे सम्बन्ध हैं और उन्हें मैं हमेशा बनाये रखना चाहता हू। दरअसल, मैं नहीं चाहता कि आपके वैवाहिक सम्बन्धों को कोई नुकसान पहुँचे इसलिए यह बात मैं आपको बता रहा हूँ।
''तो मुझे पहले क्यों नहीं बताया? और आज क्यों बता रहे हो?''
''पहले शायद इसलिए नहीं बताया कि मैं सोचता था रिजल्ट नेगेटिव आएगा। और अब इसलिए बता रहा हूँ क्योंकि पहले ही बहुत देर हो चुकी है।''
''हाँ, साला प्रेगनेंसी टैस्ट है जो नेगेटिव आएगा क्योंकि मैंने तो कंडोम यूज किया था। क्यों?'' विदित ने खिन्न स्वर में कहा।
तभी वेटर बीयर ले आया। अजीत कुछ कहना चाहकर भी नहीं बोला।
वेटर के जाने के बाद विदित ने लिफाफा खोला। लिफाफे में चार तस्वीरें थीं जिनमें उसकी पत्नी इरा किसी अजनबी के साथ थी। जो डिटेल उनके साथ थी उसके अनुसार इरा चार बार इस व्यक्ति से मिली थी। उसने गौर से उस अजनबी को देखा। अजनबी वही था जिसे उसने मॉल में इरा के साथ बाँहों में बाँहें पिरोये देखा था। रिपोर्ट में उसका नाम अलंकार नैमा लिखा था जो ठाणे के एक इंजीनियरिंग कॉलेज का छात्र था। उसे नाम से कुछ याद आने लगा। उसे याद आया इरा ने ही उसे बताया था कि उसके किसी रिश्तेदार का लड़का उज्जैन से यहाँ पढ़ाई के लिए आया है और जिसका नाम उसने अलंकार नैमा बताया था। तो इससे मोहब्बत की पींगे बढ़ाई जा रही हैं।
''हाँ तो मैं कह रहा था सर कि अगर आप ये सब बाहर के धन्धे बन्द कर दें तो सब ठीक हो जाएगा।''
विदित ने अजीत को जलते हुए नेत्रों से देखा।
''अपनी फीस बताओ?'' उसने कठोर शब्दों में कहा।
''आप मेरे साथ बीयर पी रहे हैं, यही मेरी फीस है।'' अजीत ने धीरे से कहा।
विदित गुस्से में और कुछ कहना चाह रहा था लेकिन गुस्से की अधिकता से ही उससे बोला नहीं गया।
''रिलैक्स सर, जिन्दगी हमें सबक सिखा रही है। इसे बुरा वक्त समझ कर भूल जाने की कोशिश कीजिए और अपने घर परिवार में ध्यान दीजिए।''
विदित शून्य में कहीं देख रहा था। अजीत का उपदेश वह समझ नहीं पा रहा था।


हाजी अली चौराहा
सेहर अनिश्चित-सी फुटपाथ पर छाता ताने खड़ी थी। अभी वह जूस वाले की ओर पलटी ही थी कि...
''ऐ छोकरी'' मवाली गुस्से से बोला, ''मेरे को भौंपू बोली तू?'' भौंपू बोली मेरे को?''
''सुनाईच तो दिया न तेरे कू। फिर कायकू पूछता है?'' वह भी उसी स्वर में बोली।
''साली कुतरी, मेरे साथ ज्यासती अड़ी की न मैं फाड़ के डाल देंगा तेरे कू।'' कहते हुए वह उठ खड़ा हुआ।
''साले, हलकट, मवाली मेरे कू कुतरी बोला तू।'' सेहर फिर उबल पड़ी, ''अपनी माँ को खुला छोड़ कू आया या बाँध कू आया। साला मेरे कू कुतरी बोलता है...''
अब मवाली के हाथ में चाकू लहरा रहा था और वह तिरपाल से बाहर निकल आया।
चाकू देखते ही सेहर की बोलती बन्द हो गई। क्या वह इतने भीड़ भरे चौराहे पर चाकू मारने की हिम्मत कर सकता है। उसने आसपास देखा। सैकड़ों लोग थे पर उसे नहीं पता चल रहा था कि कौन उसे या उस मवाली को देख रहा है और कौन नहीं।
''क्यों, कांटी देखते ही जबान सूख गया। निकाल, निकाल दो हाथ की।'' मवाली क्रूर स्वर में बोला।
''देख'' वह हिम्मत करके बोली, ''मेरा तेरे से कोई लफड़ा नेई, कोई लेन-देन नेई। पण मेरे को मेरा पइसा तो मँगता न। तेरे को बीच में नेई पड़ने का। बरोबर।''
''पण बीच में तो अब कांटी है, वोईच बरोबर करेगी जो बरोबर होयेंगा, क्या?'' मवाली पूर्ववत खूँखार स्वर में बोला।
सेहर ने चाची को देखा। वह उसे नहीं देख रही थी, वह तो गुलाब के गुच्छे तैयार करने लग गई थी। अब जो कुछ करना था, सेहर ने करना था।
मवाली उसकी ओर बढ़ा।
''देख अपुन का तेरे से कोई लफड़ा नेई, अपुन...''
मवाली ने उस पर चाकू से वार किया। सेहर ने अपनी छतरी चाकू के आगे कर दी। चाकू छतरी को चीरता हुआ निकल गया। सेहर छाता छोड़कर सड़क की ओर भागी। मवाली उसके पीछे। साड़ी का लहराता आँचल उसके हाथ में आ गया। सेहर ने पलटकर अपने पर्स से उस पर वार किया।
वहाँ मौजूद लोग उन्हें देख रहे थे, वाहन वाले उन्हें देख रहे थे लेकिन सब लोग सिर्फ देख रहे थे।
मवाली ने पर्स के वार को बचाते हुए चाकू से सेहर पर वार किया पर पर्स से बचते हुए उसका पैर पानी भरी सड़क पर फिसल गया लेकिन उसके चाकू ने अपना काम कर दिया। चाकू सेहर की कमर के पिछले हिस्से पर तेज घाव बनाता हुआ मवाली के हाथ से फिसल कर सड़क पर गिर गया।
सेहर ''हाय'' करती हुई चिल्लायी और भूला भाई देसाई रोड़ की ओर से आने वाली एक कार के बोनट से टकराई। घाव से खून बहता हुआ उसकी साड़ी पर गिर रहा था। सेहर ने हिम्मत करते हुए कार का दरवाजा खोलने की कोशिश की। दरवाजा खुल गया। वह तेजी से भीतर घुस गई। ड्राइवर की सीट पर एक स्त्री बैठी हुई थी। जो भी हुआ था इतने अप्रत्याशित ढंग से हुआ था कि वह स्त्री हड़बड़ा गई थी। उसे एकाएक समझ नहीं आया कि क्या करे? क्या बोले?
सेहर ने शीशे से बाहर मवाली को देखा। मवाली के पैर में मोच आ गई थी। उठने की कोशिश करता हुआ वह कार में बैठी सेहर को घूर रहा था। सेहर उस महिला की ओर पलटी।
''ऐ बाई'' सेहर पीड़ा भरे स्वर में बोली, ''गाड़ी भगा न इदर से।''
महिला को स्थिति समझ आने लगी।
''क्या...क्या प्राब्लम है? नीचे उतरो फौरन। जल्दी करो।'' महिला बोली।
''बाई मैं तुम्हेरे हाथ जोड़ती मेरे कू यां से ले चल बाई। वो मेरे कू मार डालेंगा।'' सेहर भर्राये स्वर मे बोली। उसे बहुत दर्द हो रहा था।
''मैं कुछ नहीं जानती, तुम उतरो जल्दी...ओ माई गॉड।'' उसने सेहर की कमर से बहता खून देख लिया जो कार की सीट खराब कर रहा था, ''जल्दी उतरो, मेरी सीट भी खराब कर दी।'' स्त्री तमतमा गई।
पीछे से वाहनों के हॉर्न बज रहे थे। स्थिति बड़ी विकट थी। न चाहते हुए भी महिला को कार आगे बढ़ानी पड़ी। वह पहले से ही दुखी थी और एक और दुखी महिला ने उसके दुख को और बढ़ा दिया था। वह इरा थी। वह महालक्ष्मी रेसकोर्स की तरफ मुड़ना चाह रही थी लेकिन हड़बड़ाहट, पीछे के वाहनों के दबाव और कार में बैठी घायल स्त्री के कारण वह सीधे लाला लाजपत राय मार्ग पर आ गई।
''मेरे कू भोत दरद हो रहा है, कोई आजू बाजू असपताल हो तो मेरे कू उदर छोड़ दे बाई।'' सेहर अपनी साड़ी के पल्लू को कमर के गिर्द लपेटती हुई इरा से बोली।
इरा को सेहर का चेहरा कुछ पहचाना लग रहा था लेकिन परेशानी, मुसीबत और बारिश में कार ड्राइव करने की मशक्कत में उसे याद नहीं आ रहा था कि यह वही बाजारू औरत है जिसका कुछ देर पहले उसने अपने पति के साथ फोटो देखा था।
इरा कार किनारे रोककर इस मुसीबत से छुटकारा पाना चाह रही थी लेकिन उसकी पीड़ा और खून देखकर उससे कुछ कहते नहीं बना। वह कार किनारे करने ही लगी थी कि सेहर विनती करने लगी, ''ऐ बाई, कार इदर मत रोकने का, वो मवाली फिर इदर आ जाएगा।''
इरा ने एक गहरी साँस छोड़ी और कार की गति बनाए रखी। सड़क पार दूसरी ओर इरा को एक साइन बोर्ड दिखाई दिया जिसे देखते ही उसके चेहरे पर सन्तोष की आभा फैल गई। साइन बोर्ड एआईआईपीएमआर अस्पताल का था जो कुछ ही मीटर दूर था। थोड़ा आगे जाने पर अस्पताल की इमारत भी दिखाई दे गई। वह सोच रही थी कि अस्पताल भी पास ही मिल गया, अब जल्द ही इस मुसीबत से छुट्टी मिल जाएगी। उसने सेहर को देखा। सेहर किसी को फोन मिला रही थी।
''अस्पताल आ गया।'' इरा बोली।
सेहर ने भी अस्पताल की इमारत को देखा। मोबाइल फोन कान पर लगा था। अभी कॉल लगी नहीं थी। दर्द की अधिकता से उसका चेहरा विकृत होने लगा था और सिर घूमने लगा था।


मिकास रेस्टोरेंट, भूला भाई देसाई रोड़
''शायद आप समझ रहे होंगे सर कि मैं आपका गुनहगार हूँ।'' अजीत कह रहा था, ''लेकिन मुझे जो ठीक लगा मैंने किया और अब भी मुझे जो ठीक लग रहा है वही कर रहा हूँ।''
विदित खामोशी से उसे देख रहा था। एकाएक उसे याद आया।
''रिपोर्ट...रिपोर्ट कहाँ है? अभी तो उसे नहीं दी न?'' उसने उत्तेजित स्वर में पूछा।
अजीत ने प्रतिक्रियास्वरूप अपना बीयर का गिलास उठाया और एक बड़ा-सा घूँट लिया।
उसकी प्रतिक्रिया से विदित ने जो अनुमान लगाया वह निराश करने वाला था।
''मेरी पीठ में छुरा घोंपने वाले जरा अपना मेहनताना भी बता दो।'' वह गुस्से से बोला।
''मैंने ये काम फीस के लिए नहीं किया।'' अजीत अभी भी बीयर चुसक रहा था।
''मेरी बीवी से तो ली होगी?'' विदित ने व्यंग्यपूर्ण स्वर में कहा।
''उनसे भी नहीं।'' अजीत ने धीरे से कहा, ''मेरा मकसद है दोनों को सच बताकर उसका समाधान करना। मैं किसी को अन्धेरे में नहीं रखना चाहता था। मैं आपको दिल से अपना दोस्त मानता हूँ और बहुत इज्जत करता हूँ। मैंने पहले भी कहा, मुझे जो ठीक लगा मैंने किया।''
''अच्छा! सच में ही बहुत...'' वह रुक गया। उसका मोबाइल बज रहा था।
स्क्रीन पर सेहर का नाम और नम्बर चमक रहा था। विदित ने अजीत को देखा। वह बीयर का अन्तिम घूँट ले रहा था। उसने मोबाइल का हरा बटन दबाया और कान से लगाया।
''हाँ?''
''सेठ...सेठ?'' सेहर की डूबी-सी आवाज उसके कानों में पहुँची।
''क्या हुआ? बोलो सेहर, क्या हुआ?'' विदित का स्वर थोड़ा तेज हो गया।
सेहर का नाम सुनते ही अजीत ने उसे देखा और असहाय भाव से गर्दन हिलाई।
''सेठ, मेरे कू...चाकू मारा किसी ने। भोत खून बहता है सेठ। एक बाई मेरे कू हस्पताल लेकू आई। अपुन की मदद कर न सेठ। सेठ सुन...रहा...है।''
''सेहर! सेहर! कौन से अस्पताल में है? बताओ मुझे।'' वह अधीरता से बोला।
अजीत उलझनतापूर्वक उसे देख रहा था लेकिन विदित उसे नहीं देख रहा था।
''हस्पताल का नाम... बता न... बाई।'' उसे सेहर अस्पष्ट-सी आवाज आई। शायद उसे ज्यादा चोट आई है। उसे कौन चाकू मार सकता है? वह अभी सोच ही रहा था कि नई आवाज उसके कानों में पड़ी।
''एआईआईपीएमआर अस्पताल है, हाजी अली के सामने। मैं इन्हें एमरजेन्सी में ले जा रही हूँ, आप इनके जो भी हैं, जल्दी आ जाइये।'' और फोन कट गया।
फोन कटने के बाद भी विदित उसे कान से लगाये रहा। वह असमंजस में था। फोन पर जो दूसरी आवाज उसने सुनी थी वह इरा की आवाज जैसी थी। पूछना चाहकर भी वह पूछ नहीं पाया। वह अस्पताल का नाम भी पूरी तरह नहीं सुन पाया।
''क्या हुआ, सर?'' अजीत भी परेशान हो गया।
''हाजी अली के पास कौन-सा हॉस्पिटल है?'' मोबाइल को मेज पर रखते हुए उसने पूछा।
''वहाँ तो एआईआईपीएमआर है, क्या हुआ?''
''कुछ नहीं। मुझे वहाँ जाना है।'' वह उठ खड़ा हुआ, ''बिल मेरे आफिस भेज देना।''
''सर, आप अभी भी नाराज हैं। आप बाद में सोचेंगे तो शायद आपको लगेगा कि मैंने जो किया, ठीक किया। मुझ पर भरोसा रखो, सर।'' अजीत गम्भीरतापूर्वक बोला।
''ओके।'' विदित ने अपना मोबाइल फोन उठाया और मुड़ गया।
''आपने सेहर का नाम लिया था, कोई प्राब्लम खड़ी हो गई क्या? मैं साथ आ सकता हूँ अगर कोई दिक्कत न हो तो?''
विदित ठिठक गया। फिर पलटकर बोला, ''थैंक्यू।'' और तेजी से बाहर निकल गया।


एआईआईपीएमआर अस्पताल, लाला लाजपत राय मार्ग
इरा सेहर को एमरजेन्सी वार्ड में ले गई।
फोन पर बात करते समय सेहर को चक्कर आ गए थे जिसके कारण इरा ने फोन पर किसी को अस्पताल के बारे में बताया था। फोन काटकर उसने उसे डैशबोर्ड पर रख दिया था। सेहर को पकड़कर वार्ड में ले जाने के कारण वह उसका फोन वहीं भूल गई।
घाव वास्तव में गहरा था। डाक्टर ने इसे पुलिस केस बताया था। सेहर ने जब डाक्टर को अपना नाम बताया तो इरा को उसका फोटो वाला चेहरा याद आ गया। यह वही बाजारू औरत थी जिसके चक्कर में आजकल उसका पति है। उसने एक आह भरी। क्या अजीब संयोग हुआ है? उसे आज ही उसके बारे में मालूम हुआ था और आज ही उससे मुलाकात भी हो गई। जब उसने सेहर और विदित का फोटो देखा था तभी उसके भीतर सेहर के प्रति नफरत भर गई थी और अब हालात ऐसे हो गए कि वह उसकी जान बचाने में सहायता कर रही है।
अब एक मुसीबत और खड़ी हो गई थी। सेहर का पुलिस केस बन गया था और उसे पुलिस के आने तक रुकने के लिए कहा गया था।
उसने समय देखा। छह बजने वाले थे। उसने पर्स में से मोबाइल निकाल कर अपने घर फोन लगाया। उसके बच्चे घर में नौकरानी के साथ थे। उसने बच्चों को कहा भी था कि वह छह बजे तक आ जाएगी। फोन करने के बाद वह वाहर बिछी बैन्च पर बैठ गई। वह सोच रही थी, ''अभी तक मैंने खुद को विदित से बात करने के लिए भी तैयार नहीं किया है। अगर वह मेरा सच जानता है तो मैं भी उसका सच जानती हूँ। नुकसान दोनों को ही होगा। क्या हमारे बीच इस बारे में बात हो पाएगी? या हम दोनों ही खामोश रहेंगे?''
हम दोनों का सच!
जैसे कुछ चीजें आपके चाहने भर से ही नहीं होने लगती, ऐसे ही कुछ चीजें न चाहते हुए भी अपने आप होती चली जाती हैं। ऐसा इरा के साथ हुआ था। अलंकार उसके दूर के रिश्ते में कुछ लगता था जो उज्जैन के पास देवास में रहता था। पहली बार उसका फोन आया था जो उसे उज्जैन में इरा की भाभी ने दिया था। उसने बताया था कि वह ठाणे के एक इंजीनियरिंग कॉलेज में पढ़ने आया था। और एक बार वह उससे मिलने चली गई थी, एक औपचारिक रिश्तेदारी निभाने वाली मुलाकात। उसे अलंकार अच्छा लड़का लगा। उसने अलंकार के बारे में विदित को भी बताया था जिसे विदित ने भावहीन तरीके से लिया था। फिर, जो होता गया उसमें गलती किसी की नहीं थी, स्थितियाँ वैसी बनती गईं।
अब क्या-क्या हो सकता है उसमें इरा का दिमाग उलझने लगा। उसे महसूस हुआ जैसे वह पहेलियों में घुस गई है जहाँ सारे रास्ते एक जैसे लग रहे हैं। फिर उसे सेहर का खयाल आया। उसके प्रति जो शुरू की नफरत थी वह सामने हो रही बारिश के पानी की तरह ही बह गई थी। वह तो लड़की है, वेश्या है, उसका तो काम ही यही है। उसकी कोई गलती नहीं है, गलती विदित की है जो शादीशुदा और बाल बच्चे वाला होते हुए भी ऐसे काम कर रहा है। जैसे हवा से बरसते पानी की दिशा बदल जाती है वैसे ही उसकी नफरत सेहर से शुरू होकर विदित पर आकर रुक गई।
तभी उसे अपनी कार का ध्यान आया जिसे सेहर को उतारने के कारण वह गलत पार्क कर आई थी। वह बैन्च पर से उठी और तेज कदमों से कार की दिशा में चल दी। कम्पाउण्ड पार कर वह अपनी कार की ओर जाने ही लगी थी कि तेजी से चलती हुई एक लाल रंग की वैगन आर कार कम्पाउण्ड में दाखिल हुई। गाड़ी पहचानी हुई सी लगी, नहीं, पहचानी सी नहीं, पहचानी ही थी। यह विदित की वैगन आर थी। पार्किंग के लिए उसे आगे से घूम कर आना था इसलिए कार आगे निकल गई। बारिश और काले शीशे होने के कारण वह विदित को नहीं देख पाई। अभी वह कम्पाउण्ड के साये में ही थी। उसने पर्स में से मोबाइल निकाला और विदित का नम्बर मिलाया। वह पशोपेश में थी कि विदित यहाँ कैसे? कहीं सेहर ने उसे ही तो फोन नहीं लगाया था? कहीं उस बाजारू औरत का सेठ विदित ही तो नहीं?
''हाँ, मैं अभी बिजी हूँ'' फोन उठाते ही विदित की आवाज उसके कानों में पड़ी, ''थोड़ी देर में करता हूँ। तू पहुँच गई घर?''
''मैं रास्ते में हूँ।'' इरा ने धीरे से कहा।
''ठीक है।'' उसने फोन काट दिया।
आज विदित ने फोन उठाते ही ''हाँ जी'' नहीं कहा, अगर कोई और समय होता तो उसे बहुत अजीब लगता।
वह अपनी कार के पास पहुँची। सबसे पहले उसने कार मुनासिब जगह लगाई फिर डैशबोर्ड से सेहर का फोन उठाया।
ग्यारह मिस कॉल!
उसने नम्बर देखा। नम्बर विदित का था जो ''साड़ी वाला सेठ'' के नाम से उसमें फीड था। इरा ने सेहर के मोबाइल से ही कॉल बैक की। जब कॉल विदित तक पहुँची, वह एमरजेन्सी वार्ड में दाखिल हो रहा था। उसने फौरन फोन का हरा बटन दबाया।
''कहाँ हो तुम?'' वह अधीरता से बोला।
''इरा बोल रही हूँ।''
''कौन?'' वह असमंजस स्वर में बोला।
''इरा, इरा। अपनी पत्नी की आवाज नहीं पहचान रहे।'' इरा भरसक अपने स्वर को शान्त करने का प्रयास कर रही थी।
''तू!! तेरे पास ये फोन कहाँ से आया? और तू है कहाँ? अस्पताल में?'' विदित ने उलझे-सुलझे स्वर में कई प्रश्न पूछ लिए।
''हाँ, मैं अस्पताल में हूँ। आपकी बाजारू औरत को मैं ही यहाँ लेकर आई हूँ। बेचारी बहुत घायल है, दीदार कर लो, सहला लो, कन्सोल कर लो। तुम्हारे इन्तजार में उसकी आँखें पथरा गई हैं।'' इरा जो दिल में आ रहा था बोले जा रही थी, ''आप सामने दिखाई दोगे तो उसके दिल को तसल्ली मिलेगी। आखिर आप डेढ़ करोड़ की आबादी में अकेले जो हो जिसको उसने मुसीबत के समय फोन लगाया। जाओ, पहुँचों उसके पास...।''
''इरा, इरा। मेरी बात सुन। कोई दौरा पड़ गया है? क्या हो गया तुझे?'' विदित लगभग चिल्लाते हुए बोला।
''...उसके दर्द में कमी आएगी, बहता हुआ खून रुक जाएगा। मेरा यार आ गया है। मेरा साड़ी वाला सेठ आ गया है। फिर आप उस मवाली को मारने की कसम खाओगे और आँधी-तूफान की परवाह करे बगैर उसे तलाश करने चल दोगे। जाओ, तुम्हारी सेहर प्रतीक्षा कर रही है। जाओ...जाओ...।'' उसकी रुलाई फूट पड़ी।
''इरा, कहाँ है तू? बता मुझे।''
इरा नहीं सुन रही थी। वह सिर्फ रो रही थी। कुछ पल तक विदित को उसके रोने की आवाज सुनाई देती रही फिर फोन कट गया।
विदित ने कॉल बैक की। घण्टी बजती रही...बजती रही।
विदित सेहर को भूल चुका था। उसे इरा की चिन्ता हो रही थी। इस अजीत के बच्चे ने कैसी मुसीबत खड़ी कर दी थी। वह बारिश में भीगता हुआ इरा की सफेद आल्टो खोजने लगा। जल्दी ही उसने कार ढूँढ ली। इरा ड्राइविंग सीट पर बैठी हुई थी। उसने शीशा खटखटाया। इरा ने सिर उठाया और शीशा नीचे किया।
''इरा, घर चलो।'' विदित बोला।
इरा अब तक शान्त हो चुकी थी। रोेने से जी हल्का हो गया था। वह बिना कुछ कहे बाहर निकली। अब दोनों बारिश में भीग रहे थे।
''जो भी कुछ हुआ है उस बारे में हमें जो भी बात करनी है, घर पर करते हैं। ठीक है?'' विदित बोला।
इरा ने कोई उत्तर नहीं दिया।
''तू घर चल। मैं अपनी गाड़ी लेकर आता हूँ।''
''नहीं जा सकती। उस लड़की का पुलिस केस बन गया है, पुलिस के आने तक रुकना पड़ेगा।'' उसने धीरे से कहा और बारिश से बचने के लिए कम्पाउण्ड की ओर चल दी।
''पुलिस से मैं निपट लूँगा, तू जा।'' विदित भी पीछे लपका।
''पुलिस से मैं निपट लूँगी, आप जाओ।'' कम्पाउण्ड में आने के बाद उसने कहा, ''मैंने कुछ नहीं किया। मैं सिर्फ उसे लेकर आयी हूँ। मुझे पुलिस से बचने की जरूरत नहीं है।''
विदित निरुत्तर हो गया।
''मैं साथ रहूँगा।'' फिर उसने कहा।
''लेकिन मैं नहीं चाहती कि आप मेरे साथ रहें।'' उसने स्प शब्दों में कहा और आगे बढ़ गई।
विदित पशोपेश में वहीं खड़ा रहा और इरा को जाते देखता रहा। कुछ देर में वह नजरों से ओझल हो गई। वह खाली नजरों से अस्पताल की इमारत, उसमें घूमते अस्पतालकर्मी, डॉक्टर और लोगों को देखता रहा।
कुछ बातों का छिपा रहना ही हमारे लिए अच्छा होता है, जो खामोश कहीं दबी रहती है लेकिन उनके सामने आते ही समस्यायें शुरू हो जाती हैं। जो हो रहा था उसकी शुरुआत उसने की थी और अन्त? और अन्त कौन करेगा? या भीतर ही कहीं अटक जाएगा जो एहसास दिलाता रहेगा कि गलतियों का परिणाम भुगतना ही पड़ता है चाहे वह किसी रूप में हो।
इरा सेहर के पास पहुँची। उसके जख्म पर पट्टी बँध चुकी थी और उसे दो-तीन इन्जेक्शन दिये जा चुके थे। उसका चेहरा नुचड़ा हुआ लग रहा था। वह बैड पर करवट लेकर लेटी हुई थी। इरा को देख वह हल्का-सा मुस्कराई।
''अब कैसी तबीयत है?'' इरा ने आत्मीयता से पूछा।
''मैं ठीक है, मेडम। अब बरोबर है बस थोड़ा दुखता है।'' सेहर क्षीण स्वर में बोली।
''लगा है तो दुखेगा भी। तुम जल्दी ही ठीक हो जाओगी।'' इरा ने पर्स खोलकर सेहर का मोबाइल फोन निकाला और उसकी ओर बढ़ाया, ''तुम्हारा सेठ तो अभी आया नहीं।''
''बारिश में... कहीं अटक गया होयेंगा।'' सेहर ने मोबाइल ले लिया और हिचकते हुए कहा।
''सेठ तुमको कितने पैसे देता है?'' इरा ने उसकी आँखों में झाँकते हुए पूछा।
''बोले तो?...क्या?'' सेहर समझ नहीं पाई कि ये अजनबी महिला क्या कहना चाह रही है।
''मैं पूछ रही हूँ तुम्हारा ये वाला सेठ तुम्हें कितने पैसे देता है, एक बार में।'' इरा ने एक-एक शब्द को साफ-साफ और जोर देते हुए कहा।
''तुम्हेरे को मालम मय क्या करती?'' वह हैरानी से बोली।
इरा ने सहमति में सिर हिलाया।
''कायकू पूछती? और अपुन नेई बोले तो?''
''कोई जरूरी नहीं।'' इरा ने दृढ़तापूर्वक कहा, ''मुझे नहीं पता वो सेठ तुमको क्या देता था पण मेरे पास तीन हजार रुपये हैं। सेठ की तरफ से आज की तुम्हारी फीस मैं भरूँगी।'' कहते हुए उसने पर्स खोला और उसमें से पाँच सौ के कुछ नोट सेहर के हाथ में जबरदस्ती ठूँस दिए। सेहर की आँखों में आश्चर्य ठहर गया था।
''आज के बाद वो सेठ तुम्हारे पास नहीं आयेगा।'' इरा बोली, मुड़ी और बाहर की ओर चल पड़ी।
सेहर से कुछ कहते नहीं बना। वह जड़ अवस्था में उस अजनबी महिला को जाते देखती रही

2 comments:

  1. अच्छी कहानी ,बधाई

    हिंदी ब्लाग लेखन के लिये स्वागत और बधाई । अन्य ब्लागों को भी पढ़ें और अपनी बहुमूल्य टिप्पणियां देने का कष्ट करें

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  2. बहुत बढिया कहानी है जी, धन्यवाद
    एक फिल्म की तरह पूरी कहानी चलती रही
    पूरी पढकर ही चैन आया है

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